याज्ञवल्क्य
शुक्रवार, 20 सितंबर 2013
————अचानक———
————अचानक———
था अंधेरा इस तरह
खोने का डर लगने लगा.
तुम मगर कौंधे
अचानक रास्ते दिखने लगे.
— याज्ञवल्क्य
बुधवार, 16 जनवरी 2013
याज्ञवल्क्य:
याज्ञवल्क्य:
शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012
शुक्रवार, 29 जून 2012
मन और मस्तिष्क में भावनाओं व विचारों की लहरें मचलती रहती हैं. यह संवेदनशीलता पर भी निर्भर हैं. यदि अन्य लोग इनके साथ अपनापन महसूस कर सकें तो और भी ज्यादा अच्छा लगता है.
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